Saturday, December 29, 2018

पुस्तक समीक्षा - मानस का हंस

अमृत लाल नागर जी द्वारा रचित कालजयी उपन्यास मानस का हंस महाकवि तुलसीदास जी के जीवन पर आधारित एक क्लासिक उपन्यास है। यह उपन्यास न केवल भाषा शैली या रचनात्मक दृष्टि से उत्कृष है अपितु मानव जीवन को सकारात्मक ऊर्जा भी प्रदान करता है।

इस उपन्यास में महाकवि तुलसीदास का आत्म संघर्ष वृहद रूप से दर्शाया गया है। नन्हा बालक रामबोला, जिसके जन्म लेते ही माँ की मृत्यु हो जाती है और पिता द्वारा जिसका शैशवावस्था  में ही परित्याग कर दिया
जाता है, ऐसा अबोध बालक किस प्रकार दुर्गम परिस्थितियों का सामना करते हुए संसार भर में पूज्यता को प्राप्त करता है, इस बात का सजीव वर्णन इस उपन्यास में मिलता है।

बचपन से ही निर्धनता और अकिंचनता का  महाभिशाप झेल रहे तुलसी के मन में किस प्रकार राम भक्ति की लौ प्रज्वलित हुई और किस प्रकार ये लौ ज्वाला बनकर उनके जीवन को प्रकाशमय करती है, इस उपन्यास में विशद चित्रण  किया गया है। युवा तुलसी के मन में मोहिनी नामक युवती के प्रति कामोत्तेजना और प्रभु राम के प्रति आस्था में द्वन्द का चित्रांकन अमृतलाल नागर के अलावा कोई और नहीं कर सकता। मूल रूप से तुलसीदास जी के काम लालसा पर विजय की गाथा का वर्णन इस उपन्यास के माध्यम से किया गया है। पत्नी रत्नावली एवं बसी बसाई गृहस्थी को त्यागने का मार्मिक विवरण पठनीय है।

इस उपन्यास में न केवल तुलसीदास जी के मनोविज्ञान का दर्शन देखने को मिलता है अपितु उस दौर के सामाजिक परिप्रेक्ष्य का भी सजीव वर्णन किया गया है।  इस उपन्यास के माध्यम से पाठक आध्यात्मिकता को एक नए दृष्टिकोण से देख सकता है।  निश्चित ही यह उपन्यास पाठक के जीवन को भद्रता, सौम्यता एवं शान्ति प्रदाय करता है।  

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